मेरी बैस्टी मेरी डायरी# डायरी लेखन प्रतियोगिता -17-Dec-2021
मेरी डायरी मेरी प्यारी बैस्टी...
ओ मेरी डायरी
तेरी मेरी यारी है
तीन दशक से भी ज्यादा पुरानी
तूने अकसर मेरे दिल की
हर बात है जानी
कभी अपनों ने हँसाया तो कभी रुलाया
मैंने तुझको सब कुछ है बताया
पहले सबसे छुपाऐ फिरती थी तुझको
और सब रहते थे परेशान
तुझे पढ़ने के लिए
मनगढ़ंत कहानियां गढ़ने के लिए
मेरे हर शब्द जो मैं लिखती थी तुझमें
छुपके से पढ़ लेते थे कुछ अपने
फिर तोड़ मरोड़ कर मुझे ही परोसते थे वो
अब जब सब कुछ ओनलाईन हो गया है
इंटरनेट की दुनिया में सब बदल गया है
तो तूँ भी चल पड़ी है जमाने के संग
किसी से छुपाऊं क्यों अपने मन की मैं बात
पढ़ना है जिसको बेधड़क पढ़ ले
अब ना मैं डरती किसी से
जो समझना है मेरे शब्दों का अर्थ समझ ले
और ना आऐ अगर कुछ भी समझ तो
मुझसे ही पूछ ले
मैं तब थी सिर्फ छह-सात साल की
जब पहली बार
हुई थी तेरी मेरी दोस्ती
तूँ बहुत ही सहारा बनी है मेरा
जब ना होते थे ऐसे फोन और सुविधाएं
जैसे अब हो गई है
ना था जब कोई संगी साथी ही मेरा
तुझ संग बिताती थी समय मैं अपना
अपना सब सपना तुझको बताया
तूने ही हर पल मेरा साथ निभाया
आज फिर मन उदास है
मन में ढेरों सावाल हैं
आई हूँ तेरे पास
क्या छुपा पाऐगी
अब भी मेरे सारे राज
अब तो थक गई छुपा के हर बात
हँसते हुऐ सहते रहना
सबने समझा मेरी मजबूरी
समझ ना पाता कोई मुझको
बस एक सहारा तेरा मुझको
खरगोश जब से आए हैं घर में
मन में आती भावनाओं
पर कहती हूँ मैं तुझसे
खुले खेत खलिहान में रहते
खरगोश जैसा ही तो था मेरा भी जीवन
अपने मन का कर पाती थी
जब तक चाहे सो पाती थी
जो चाहे खा पाती थी
जहाँ चाहे जा पाती
जो ईच्छा हो पहन सकती थी
ऐसा तो ना था
कुछ बंदिसे तब भी थी
पर अपने परिवार संग मैं खुश थी
उस खरगोश के बच्चे की तरह जो
अपने माता पिता के पास
खुद को समझता है सुरक्षित
अपनी उस सीमित दुनिया में भी
उछल कूद कर सकता है
पर जब उसको उसके माता-पिता
भाई-बहन यार-दोस्तों से दूर
नई जगह में लाया जाता है
गुमसुम वो हो जाता है
उछलकूद सब भूल जाता
बस दौड़ लगा पहुँचना चाहता है
अपने परिवार में
पर जब वो परिवार ही
ना दे उसका साथ
वो घुटकर रह जाता है
ना नऐ परिवार को अपना पाता है
और ना ही अपने उस परिवार
को भूल पाता है
जहाँ उसका हुआ जन्म
ओ मेरी डायरी
छुपा सकेगी क्या ये राज
बना एक सुंदर सा पिंजड़े जैसा उसका घर
पर वो तब भी है बेघर
पर वो खरगोश तो ना था सफेद फरों वाला सुंदर
जीना उसका हो गया दुर्लभ
.......
फिर कब आऊंगी तेरे पास कह नहीं पाऊँगी
जब भी होऊंगी उदास
या बाँटनी होगी मुझे अपनी खुशी
तेरे पास चली आऊंगी।
***
आज के लिए इतना ही..
कविता झा'काव्या कवि'
# लेखनी
# डायरी लेखन प्रतियोगिता
17.12.2021
Seema Priyadarshini sahay
04-Jan-2022 01:53 AM
सुंदर लेखन
Reply
🤫
18-Dec-2021 08:12 AM
बेहतरीन डायरी लेखन किया है ma'am आपने...!
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Aliya khan
18-Dec-2021 12:33 AM
Wah kya bat h
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